धारा 370 और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की विशेष स्थिति; स्वायत्ता का सवाल; पाक अधिकृत कश्मीर का सवाल; वहां पाक प्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद आदि को कश्मीर समस्या का मूल अंग माना जाता है. परन्तु इस बात को भुला दिया जाता है कि जम्मू में कुल 17 लाख हिन्दू शरणार्थी किन अमानवीय स्थिति में रह रहे हैं, जो विभाजन के समय के दंगों, 1947-48, 1965, 1971 के भारत - पाक युद्धों और 1989-90 की आतंकवादी गतिविधियों के कारण वहां आये.
इसके अलावा, जम्मू तथा कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की भी खूब चर्चा होती है, यहाँ तक कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इसे उठाया जाता रहा है; परन्तु यह सब एकतरफा है. कश्मीर में आतंकवादियों के विरुद्ध भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान जब कुछ ज्यादती हो जाती है, तो इस ओर सबों का ध्यान जाता है; लेकिन कश्मीर से विस्थापित हुए तीन लाख से ज्यादा हिन्दू कश्मीरी पंडित अत्यधिक विषम हालत में, भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे हैं - उनके मानवाधिकारों तथा मूल अधिकारों के बारे में कोई नहीं सोचता. ये कश्मीरी कोई और नहीं हैं; बल्कि एक ही राज्य के एक हिस्से (कश्मीर) से विस्थापित हो कर दूसरे हिस्से (जम्मू) में रह रहे हैं; फिर भी राज्य सरकार उनकी देखभाल नहीं कर पा रही है?
वास्तव में जम्मू तथा कश्मीर की समस्या का बाह्य रूप जितना महत्वपूर्ण है; उससे कम महत्वपूर्ण उसका आंतरिक रूप नहीं है. जम्मू तथा कश्मीर के तीन भाग हैं – जम्मू, कश्मीर और लद्दाख. यह बड़े आश्चर्य की बात है कि 15.73% क्षेत्रफल वाला कश्मीर, 84.27% शेष क्षेत्रफल पर राज कर रहा है. लद्दाख का क्षेत्रफल 58.33%, जबकि जनसँख्या सिर्फ 2.3% (2.37 लाख) है, जिनमें हिन्दू एवं बौध 53% हैं. लद्दाख पर पूरी तरह कश्मीर का नियंत्रण है.
इसी प्रकार जम्मू का क्षेत्रफल - 25.93% एवं जनसँख्या 43.7% (44.3 लाख) जहाँ हिन्दू, सिख एवं बौध करीब 70% हैं (मुस्लिम --- 30.69%). इसके बावजूद जम्मू क्षेत्र पर कश्मीर का नियंत्रण है.
1. लद्दाख से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) में अब तक 4 लोग चुने गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से एक भी बौद्ध नहीं; बल्कि सभी मुस्लिम थे।
2. वर्ष 1997-98 में के.ए.एस. और के.पी.एस. अधिकारियों की भर्ती के लिए राज्य लोक सेवा आयोग ने परीक्षा आयोजित की। इन परीक्षाओं में 1 ईसाई, 3 मुस्लिम तथा 23 बौद्धों ने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की 1 ईसाई और 3 मुस्लिम सेवार्थियों को नियुक्ति दे दी गयी जबकि 23 बौद्धों में से मात्र 1 को नियुक्ति दी गयी। इस एक उदाहरण से ही राज्य सरकार द्वारा लद्दाख के बौद्धों के साथ किये जाने वाले भेदभाव का अनुमान लगाया जा सकता है।
3. जम्मू-कश्मीर राज्य के सचिवालय के लिए कर्मचारियों की एक अलग श्रेणी है, जिन्हें सचिवालय कैडर का कर्मचारी कहा जाता है। वर्तमान में इनकी संख्या 3500 है। इनमें से एक भी बौद्ध नहीं है। यहां तक कि पिछले 52 वर्षों में सचिवालय के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों में एक भी बौद्ध का चयन नहीं हुआ है।
4. राज्य सरकार के कर्मचारियों की संख्या 1996 में 2.54 लाख थी जो वर्ष 2000 में बढ़कर 3.58 लाख हो गई। इनमें से 1.04 लाख कर्मचारियों की भर्ती फारूख अब्दुल्ला के मुख्यमंत्रित्वकाल में हुई। इनमें से 319 कर्मचारी यानी कुल भर्ती का 0.31 प्रतिशत लद्दाख से थे।
5. राज्य में सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 21,286 है, जिनमें राज्य परिवहन निगम में केवल तीन बौद्धों को ही नौकरी मिल सकी। राज्य के अन्य 8 सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) में एक भी बौद्ध को नौकरी नहीं मिली है।
6. 1997 में 24 पटवारियों की भर्ती हुई जिसमें केवल एक बौद्ध और शेष सभी मुसलमान थे। इसी प्रकार 1998 में राज्य शिक्षा विभाग में चतुर्थ श्रेणी के 40 कर्मचारियों की भर्ती हुई, जिनमें से एक को छोड़कर सभी मुस्लिम थे।
7. अन्याय की चरम स्थिति तब देखने को मिलती है, जब बौद्धों को पार्थिव देह के अंतिम संस्कार के लिए भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अनुमति नहीं मिलती। इसके लिए शव को करगिल की बजाय बौद्ध बहुल क्षेत्रों में ले जाना पड़ता है।
इतना ही नहीं कश्मीर में सरकारी कर्मचारी 4.0 लाख हैं, जबकि जम्मू में 1.25 लाख
कश्मीर में सचिवालय में कर्मचारी 1329 हैं, जबकि जम्मू में 462
कश्मीर में पर्यटन पर खर्च 85 प्रतिशत, जबकि जम्मू में 10 प्रतिशत
कश्मीर में पर्यटकों की संख्या (गत वर्ष) 8 लाख, जबकि जम्मू में (5 लाख अमरनाथ यात्रियों सहित) 80 लाख
★ 2008 में राज्य को प्रति व्यक्ति केन्द्रीय सहायता 9754 रूपये थी जबकि बिहार जैसे बड़े राज्य को 876 रूपये प्रति व्यक्ति थी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कश्मीर एक बोझ बन चुका है और जम्मू, लद्दाख और केंद्र सरकार के बल पर उसकी सारी नवाबी टिकी हुए है.
आर्थिक पिछड़ेपन और शोषण के कारण ही बिहार से झारखण्ड, उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हुए. और, इसी आधार पर पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड, महाराष्ट्र से विदर्भ और पूर्वी उड़ीसा से पश्चिमी उड़ीसा को अलग कर नए राज्य बनाने की मांग हो रही है. ऐसी स्थिति में जम्मू और लद्दाख के क्षेत्रों को कश्मीर से अलग कर दो नए राज्य क्यों न बना दिए जायें?
आज तक भारत की सरकार संतुलन बनाये रखने के नाम पर जम्मू कश्मीर राज्य के विभाजन की अवहेलना करती आई है. परन्तु, हमें कोई हक़ नहीं है कि हम अपने स्वार्थों के लिए जम्मू और लद्दाख की जनता को दुखों के सागर में धकेल दें.
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