Monday, 25 May 2015

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का मूल्यांकन

मोदी जी के पिछले एक वर्ष के काल के मूल्यांकन में तटस्थता नहीं दिख रही है. जहाँ एक तरफ उनका अँधा गुणगान हो रहा है; वहीँ दूसरी तरफ अंध-आलोचना! समर्थक बस मोदी जी की प्रशंसा किये जा रहे हैं और कांग्रेस के पिछले कार्यकाल से तुलना करते हुए, लल्लुओं और पप्पुओं को बस धिक्कार रहे हैं; वे कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं. कट्टर हिन्दू इस मुगालते में हैं कि मुसलमानों को मोदी जी अब निकाले, कि तब! दूसरी ओर कांग्रेसी, वामपंथी, मुलायम और नीतीश जैसे लोग न जाने किस दुनिया के वासी हैं; उन्हें न 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर दिखाई दी थी, और न ही आज ही कोई परिवर्तन उन्हें दिखाई दे रहा है!

पिछले एक वर्ष में मोदी जी द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों तथा अपूर्णताओं – दोनों का विश्लेषण होना चाहिए.

उपलब्धिओं की यदि नकारात्मक आधार पर चर्चा करें, तो हम पाएंगे कांगेसी शासन कल में कोई “शासन” ही नहीं था; सरकार जड़ हो गयी थी; प्रधानमंत्री पद की शक्ति शून्य हो कर कहीं और चली गई थी; और नित्य घोटाले पर घोटाले हो रहे थे; सुप्रीम कोर्ट की डांट का भी केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. किसी भी सरकारी योजना का कोई अर्थ नहीं रह गया था. कोयला और स्पेक्ट्रम घोटाला तथा रडिया टेप प्रकरण से सबको यह पता चल गया था कि पूंजीपति किस कदर केंद्र सरकार के प्रभावशाली मंत्रियों तक पर हावी हैं. पड़ोसियों के साथ हमारे अच्छे सम्बंध नहीं थे. पूरे विश्व को “पंचशील” एवं “गुटनिरपेक्षता” का सन्देश देने तथा  तीसरी दुनिया का नेतृत्व करने वाले भारत का, अब विश्व में वह स्थान नहीं रह गया था.

ये सारी चीजें बदल चुकी हैं. अब देश में वास्तव में एक “सरकार” है; “शासन” है. पहले विदेशों में रहने वाले लोगों को ये नहीं लगता था कि मुसीबत के वक्त भारत सरकार भी उनकी मदद कर सकती है! दुनिया भर में अपने नागरिकों को खरोंच भी लग जाये, तो उसके लिए अमेरिकी सरकार को एक पांव पर खड़ी देख हमारे मुंह से आह निकल जाती थी. आज पूरी दुनिया में रहने वाले भारतियों को लगता है कि कोई ‘भारत सरकार’ भी है, जो हर समय उनके साथ खड़ी है. नेपाल से लेकर मध्यपूर्व तक में जिस तरह से भारतियों को मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बचाया – वह एक नए युग की शुरुआत है. देश के अन्दर प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में कश्मीर और उत्तराखंड में जो तत्परता दिखाई गयी – वह मिशाल है.

पूंजीपतियों और विदेशी पूंजीनिवेश के लिए तो पिछली कांग्रेसी सरकार भी परेशान रहती थी, और कम्युनिस्ट ज्योति बसु और लालू यादव भी विदेश यात्रा करते रहते थे; मगर उन्हें पूछता कौन था? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की आर्थिक नीतियाँ मूल रूप में कांग्रेस से अलग नहीं हैं – अलग है तो मोदी जी की कार्यशैली, निष्ठा, ईमानदारी, कार्य करने की तत्परता, अट्ठारह से बीस घंटे तक काम करने की उनकी क्षमता, और सबसे बढ़कर उनकी “दृष्टि”. मोदी जी में क्या है, उसे पूरी दुनिया दिख रही है. विश्व में मोदी जी की जो जय जयकार हो रही है – वह दुनिया का मोदी जी के “विजन” को सलाम है. विकास का जो खांका मोदी जी ने खींचा है, उसे दुनिया समझ रही है. मोदी जी के नेतृत्व में भारत “विश्व की एक महाशक्ति” बनेगा.

न सिर्फ पड़ोसियों के साथ भारत के सम्बंध मजबूत हो रहे हैं, वरन पूरी दुनिया में भारत की धाक सी जम गयी है और विदेशी पूंजीनिवेश के बेहतर अवसर पैदा हो रहे हैं.  

श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘सरकार’ को एक सकारात्मक अर्थ दिया है’. यह सिर्फ “कानून और व्यवस्था” लागू करने वाली संस्था नहीं रह गयी है. “प्रधानमंत्री जन धन योजना”, “प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना”, “प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना”, “अटल पेंशन योजना”, “सुकन्या योजना” आदि से सामाजिक परिवर्तन की ओर उनका रुझान दिखता है. देश के ढांचागत विकास के लिए बिजली, रेल और सड़क परिवहन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. स्किल डेवेलपमेंट पर भी उनका जोर है.

ऐसा नहीं है कि कोई क्षेत्र मोदी जी की नजर से छूटा न हो. छूटा है, और अपूर्णताएँ भी हैं. भारत की जनसँख्या का सबसे बड़ा हिस्सा आज भी किसान हैं. “किसानों की हालत” से भारत की “दशा और दिशा” दोनों जुड़ी हुई है. परन्तु, किसान बदहाल हैं. मोदी शासन का कोई फायदा उन्हें महसूस नहीं हो रहा. यह समझ में नहीं आता कि मोदी जी की प्राथमिकता सूचि में किसानों का स्थान ऊपर क्यों नहीं है? किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए तत्काल प्रयास क्यों नहीं किये जा रहे? यदि हम 10 से 12 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के बाद किसानों की हालत में सुधार का सपना संजोये हुए हैं – तो फिर यह नोट कर लिया जाये कि तब तक न ‘किसान’ रहेंगे, और न ‘खेती’ ही सही सलामत रह जाएगी!

अच्छी शासन व्यवस्था के कारण भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगा है; परन्तु भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई विशेष कदम नहीं उठाये गए हैं. अपने आस पास देखें, तो भ्रष्ट कार्रवाई बदस्तूर जारी है. शिक्षा की गुणवत्ता और उसमें सुधार के पर्याप्त प्रयास नहीं किये जा रहे. पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई विशेष काम नहीं हो रहा है. “सबका साथ और सबका विकास” में सबों का साथ नहीं लिया जा पा रहा; क्योंकि कट्टरवादी शक्तियां लगातार सिर उठा रही हैं और साम्प्रदायिक सद्भाव एवं राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरे के संकेत मिलने लगे हैं. मुसलमानों को भारत से भगाने के लिए हिन्दू महासभा बैठक करने जा रही है. क्या साम्प्रदायिक सद्भाव के बिना देश का विकास और उसकी अक्षुणता की रक्षा संभव है? मोदी जी इस पर चुप क्यों हैं ?
यद्यपि मोदी कोर ग्रुप में कई काबिल लोग हैं, फिर भी ऐसा लागता है कि सारी सत्ता ‘प्रधानमंत्री’ में सिमट कर रह गयी है. मोदी जी चाहे कितने भी ईमानदार और सामर्थ्यवान हों – शासन एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है. मोदी जी के एक वर्ष के कार्यकाल में जो कमजोरियां और अपूर्णताएँ नजर आ रही हैं, उसका कारण भी शायद यही है. मोदी जी को अपने कुशल लोगों की टीम का विस्तार करना चाहिए.


कुल मिलाकर हम देखें, तो हर हालत में “अच्छे दिन” महसूस होते हैं. हमें जादू की आशा नहीं करने चाहिए. हर लक्ष्य, हम लड्कर और कठिन परिश्रम से हासिल करेंगे. दूरगामी लाभों को ध्यान में रखते हुए मोदी जी द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं. मोदी जी को ;आत्म – मुग्धता’ से बचना होगा, निरंतर मूल्यांकन करते रहना होगा और गलतियों को सुधारते रहना होगा; तो भविष्य के वे सुनहरे “अच्छे दिन” भी अवश्य आयेंगे. मोदी जी को शुभकामनायें! 

1 comment:

  1. whole comparison is on ideological basis which is always biased comparison must be factual

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