*झारखंड सरकार ने कुछ दिनों पहले पेट्रोल एवं डीजल पर वैट 18% से
बढ़ाकर 22% कर दिया था। परंतु पेट्रोल एवं डीजल की घटती कीमतों से परेशान होकर
सरकार ने उनपर क्रमशः15 रुपए एवं 12.5 रुपए का निश्चित (fixed) वैट लगाने का फैसला किया है; ताकि मूल्य में कमी होने पर भी टैक्स में कोई कमी न हो। यही
नहीं, मूल्य वृद्धि होने पर यदि 22% का वैट
क्रमशः15 रुपए एवं 12.5 रुपए से ज्यादा हो जाएगा, तो वैट फिक्स्ड न होकर 22% ही रहेगा। [अर्थात जो ज्यादा होगा, वह वसूल किया जाएगा] अर्थात "चित भी मेरा, और पट भी।" अर्थात "दोनों हाथों में लड्डू"।
सरकार में नैतिकता नाम की कोई चीज है, या नहीं?
*आजकल न ही सरकारों की कोई नीति रह गयी है, और न ही उनमें नैतिकता शेष बची है।
डीजल का उपभोग करने वाले ट्रकों के शक्तिशाली संगठनों ने जब
आन्दोलन की धमकी दी, तो झारखंड सरकार
ने डीज़ल पर फिक्स्ड वैट के फैसले को तुरंत वापस ले लिया; जबकि पेट्रोल पर वैट फिक्स्ड करने के फैसले को बनाये रखा है।
पेट्रोल का उपभोग करने वाली निरीह जनता, भला सरकार का क्या बिगाड़ लेगी? निकट भविष्य में झारखंड में कोई चुनाव होने वाला भी तो है नहीं!
*पेट्रोल एवं डीज़ल की कीमतों में जब लगातार वृद्धि हो रही थी, तो हमारी केंद्र की सरकारों ने भी बहती गंगा में हाथ धोया। और, खूब टैक्स वसूली की। जनता मँहगाई से त्राहि-त्राहि करती रही, लेकिन केंद्र की बेदर्द काँग्रेसी सरकारों पर इसका कोई असर नहीं
हुआ। इस मामले में आज की बी जे पी सरकार तो, और एक कदम आगे निकल गयी है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में
जब कमी होने लगी, तो उन्होंने
टैक्स का प्रतिशत ही बढ़ा दिया, जबकि जनता को रिलीफ दिया जा सकता था।
जब पेट्रोलियम पदार्थों का मूल्य बढ़ रहा था, तब तो उन्होंने टैक्स का प्रतिशत नहीं घटाया और जनता को भगवान
भरोसे छोड़ दिया; तो फिर, आज जब भगवान ने पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य में कमी की स्थिति
पैदा कर दी है, तो सरकार बीच
में कहाँ से आ गयी? क्या सरकारों को
भगवान से डर नहीं लगता?
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