Tuesday, 28 April 2015

देश भर में किसानों की हो रही खुदकुशी की घटनाएँ

देश भर में किसानों की हो रही खुदकुशी की घटनाओं की ही अगली कड़ी है, किसान गजेंद्र की आत्महत्या. किन्तु, आश्चर्यजनक बात ये है कि किसानों की आत्महत्याओं के विरुद्ध ही भाषण दिया जा रहा था; और जिसका प्रभाव ये होना चाहिए था कि अब किसानों को आत्महत्या नहीं करने की प्रेरणा मिलती! हुआ इसका उल्टा! भाषण इस तरह से दिये गये कि उत्तेजित होकर एक किसान गजेंद्र ने आत्महत्या कर ली. अगर उन्हें आत्महत्या ही करनी थी, तो वे पहले ही, और किसी भी जगह पर कर सकते थे? आमसभा में आकर आत्महत्या करने का, सामान्य स्थिति में कोई तुक नहीं बनता!
ये सब कुछ हुआ उस व्यक्ति के भाषण देने के दौरान, जो "आम आदमी पार्टी" का मुखिया, मुख्यमंत्री और आम जनता का हमदर्द होने का दावा करता है. हमारा समाज, जिसका कि राजनीति एक दर्पण भी है - कितना अमानवीय तथा संवेदना शून्य हो गया है कि एक व्यक्ति आत्महत्या करता रहे, और नेता जी का भाषण चलता रहे; परंतु किसी के कान पर जूं तक न रेंगे?
ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि बाद में, ऐसी गैर जिम्मेदाराना हरकत को बड़ी ही बेशर्मी के साथ "जायज" ठहराने का प्रयास किया जाये!
ऐसा लगता है कि श्री योगेंद्र यादव तथा उनके साथियों के पार्टी से निकल जाने से, "आप" की "आत्मा" ही निकल गई है. "आप" नेताओं की बेशर्म सफाई से तो ऐसा ही प्रतीत होता है.
हालाँकि श्री अरविंद केजरीवाल जी से उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं, परंतु जिस तरह से केजरीवाल जी चाटुकारों की फौज से घिरते जा रहे हैं, उन्हें यदि रोका नहीं जा सका; तो केजरीवाल जी की असफलता निश्चित है.
किसानों द्वारा लगातार की जा रह आत्महत्याओं से, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते. देश की आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास, किसानों के हितों की सुरक्षा के बगैर संभव नहीं है. अभी तक मोदी जी ने कोई ऐसे ठोस तथा तात्कालिक कदम नहीं उठाये हैं, जिनसे किसानों की आत्महत्या पर रोक लग सके. यह इस बात का भी द्योतक है कि मोदी जी ने भारत के विकास के लिए निजी पूँजी निवेश आधारित जिस मॉडल की रूपरेखा तैयार की है, उसमें कृषि एवं किसानों के हितों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. श्री नरेंद्र मोदी जी को भी आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है.

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