Sunday, 10 May 2015

कश्मीर समस्या का यथार्थ रूप – 02

1. महत्वपूर्ण तथ्य व मुद्दा तो यह है कि गत 66 वर्षों से जम्मू विस्थापन की मार झेल रहा है। आज अकेले जम्मू क्षेत्र में लगभग 60 लाख जनसंख्या है जिसमें 42 लाख हिन्दू हैं। इनमें लगभग 15 लाख विस्थापित लोग हैं जो समान अधिकार एवं समान अवसर का आश्वासन देने वाले भारत के संविधान के लागू होने के 60 वर्ष पश्चात भी अपना अपराध पूछ रहे हैं। उनका प्रश्न है कि उन्हें और कितने दिन गुलामों एवं भिखारियों का जीवन जीना है जबकि कश्मीरियत के नाम पर सिर्फ कश्मीर घाटी मे इस्लामी उलेमाओं का तुष्टिकरण किया जा रहा है.

2. पश्चिमी पाक के शरणार्थी- इनकी आबादी लगभग दो लाख है। ये 66 वर्ष पश्चात भी जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिक नहीं हैं। नागरिकता के सभी मूल अधिकारों वोट, उच्च शिक्षा एवं व्यावसायिक शिक्षा में बच्चों को दाखिला, सरकारी नौकरी, संपत्ति खरीदने का अधिकार, छात्रवृति आदि से यह वंचित हैं।

3. विधानसभा में पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के 24 क्षेत्र खाली रहते हैं। विधानसभा और विधान परिषद में इन विस्थापित होकर आये उस क्षेत्र के मूल निवासियों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व दिये जाने का प्रस्ताव अनेक बार आया है किन्तु इस पर सरकार खामोश है। इनके बच्चों के लिये छात्रवृत्ति, शिक्षा-नौकरी में आरक्षण आदि की व्यवस्था नहीं है।

4. 1947 में लगभग 50 हजार परिवार पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर से विस्थापित होकर भारतीय क्षेत्र स्थित जम्मू-कश्मीर में आये। आज उनकी जनसंख्या लगभग 12 लाख है जो पूरे देश में बिखरे हुए हैं। जम्मू क्षेत्र में इनकी संख्या लगभग 8 लाख है। सरकार ने इनका स्थायी पुनर्वास इसलिये नहीं किया कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर हमारे नक्शे में है, हमारा दावा कमजोर हो जायेगा, अगर हम उनको उनका पूरा मुआवजा दे देंगे। आज 66 वर्ष पश्चात भी उनके 56 कैंप हैं जिनमें आज भी वे अपने स्थायी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं।


5. जो मकान, जमीन उनको दी गई, उसका भी मालिकाना हक उनका नहीं है।1947 में छूट गई संपत्तियों एवं विस्थापित आबादी का ठीक से पंजीकरण ही नहीं हुआ फिर मुआवजा बहुत दूर की बात है। विभाजन के बाद पाक अधिगृहीत कश्मीर से विस्थापित हुए हिन्दू, जो बाद में देश भर में फैल गये, उनके जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी प्रमाण पत्र ही नहीं बनते।

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