Saturday 10 October 2015

आरक्षण की प्रासंगिकता

आरक्षण की प्रासंगिकता का सिर्फ एक ही पहलू है कि जिस प्रकार का हमारा सामाजिक तानाबाना रहा है, उसमें निन्न जातियों, विशेष कर दलितों एवं आदिवासियों के साथ, उनकी “जाति” के आधार पर लम्बे समय तक ख़राब व्यव्हार होता रहा. उनके साथ छुआछूत का व्यव्हार जिस तरह से होता आ रहा था; उसके कारण हमारे संविधान निर्माताओं ने कुछ समय के लिए (दस वर्षों के लिए) एक सीमा के अन्दर (22.5%) आरक्षण देने का प्रावधान किया था. स्पष्ट तौर पर, जातीय संरचना को तोड़ने के लिए तथा समाज में दलितों/आदिवासियों का सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करने के लिए ही आरक्षण का प्रावधान किया गया था. आरक्षण विकास का आधार नहीं हो सकता और उसे हमेशा के लिए लागू नहीं रखा जा सकता – यह स्पष्ट है.

आजादी के बाद के इन सात दशकों में यह लक्ष्य पूरा हो चुका है और प्रशासन एवं सेवा का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें SC/ST न हों. अतः अब आरक्षण जारी रखने का कोई तुक नहीं.

पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर OBC के लिए जिस 27% आरक्षण को लोगू किया – वह पूरी तरह गलत था; आधारहीन था. गरीबों के उत्थान के लिए, जिसमें अधिकतर SC/ST/OBC के ही लोग आते- वी पी सिंह ने कोई काम नहीं किया, लेकिन आरक्षण के नाम पर समाज में ऐसी आग लगाईं, जिसमें पूरा देश जल रहा है.

सामाजिक ढांचे का विश्लेषण इस आधार पर होना चाहिए था कि एक तरफ पूंजीपति, जमींदार और धन्नासेठ हैं, तो दूसरी तरफ वे मजदूर, ठेका मजदूर, खेतिहर मजदूर और सीमांत एवं छोटे-छोटे किसान हैं, जो जनसंख्या के 90% से ज्यादा हैं. इन 90% सामान्य जनता के जीवन में खुशहाली लाने के लिए परिसम्पतियों के समान वितरण एवं आधारभूत ढांचे पर काम करने की महती जिम्मेदारी थी; जिससे बचने के लिए भ्रष्ट एवं निकम्में राजनीतिज्ञों ने “आरक्षण” का एक शिगूफा छोड़ दिया. एक मजबूत देश के लिए जिस “जाति व्यवस्था” को मिटाने की जरुरत थी, उलटे उसे “आरक्षण” के आधार पर चिरस्थाई बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

आरक्षण 5-10% भले ही हो सकता है, और सुप्रीम कोर्ट ने 50% से ज्यादा आरक्षण को असंवैधानिक बता दिया है, फिर भी हमारे राजनेता नहीं मान रहे. उनका वश चले तो वे अपनी छुद्र राजनीति के लिए 100% आरक्षण लागू करवा दें. धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता- यह न्यायलय ने साफ़ साफ़ कह दिया है- फिर भी हमारे राजनेता धर्म के आधार पर भी आरक्षण दिये जा रहे हैं, जिन्हें न्यायलय को रद्द करना पर रहा है. राजनेताओं ने आम जनता को बेवकूफ समझ लिया है. लोगों को लड़ा कर सिर्फ अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. हमें उनकी वास्तविक मंशा को समझना होगा.

   

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