आरक्षण समर्थक विद्वान व्यक्तियों का मानना है कि समाज के विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिये तथा "सामाजिक न्याय" की स्थापना के लिये दलितों, आदिवासियों एवं पिछड़ी जातियों को जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए ।
सबसे पहली बात यह है कि प्रतिनिधित्व "हितों" का होता है, जिसके लिये लोक सभा, राज्य सभा, विधानसभा आदि में आरक्षण दिया जाता है; परंतु सरकारी या निजी कार्यालय कार्यस्थल होते हैं, हितों के प्रतिनिधित्व की जगह नहीं और जहाँ कर्मचारियों की योग्यता से सेवा की गुणवत्ता सीधे सीधे जुड़ी होती है। योग्य व्यक्तियों को दरकिनार कर, उनके स्थान पर अयोग्य/कम योग्य व्यक्तियों को "आरक्षण" के आधार पर जगह देना "सेवा की गुणवत्ता" को सीधे सीधे प्रभावित करता है ।
मेडिकल में हम आरक्षण देते हैं, लेकिन क्या एक कम योग्य डाॅक्टर से हम इलाज करवाना पसंद करें? अपने इलाज के लिये, लाइलाज बीमारी के इलाज के लिये हम दुनिया भर में भटकते रहते हैं, लेकिन खुद सबसे योग्य व्यक्ति को आरक्षण के आधार पर डाॅक्टर नहीं बनने देना चाहते।
चीन, दक्षिण कोरिया, जापान तथा पश्चिमी देश यदि टेक्नोलॉजी में विश्व का सिरमौर हैं, तो इसका कारण यह है कि उन्होंने "योग्यता" को पूरा सम्मान दिया और दुनिया भर से योग्य लोगों को अपनी सेवाएँ देने के लिये आमंत्रित किया। अपनी योग्यता के बल पर भारतीयों ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमायी है, और एक तरह से उनके विकास का नेतृत्व कर रहे हैं। दूसरी ओर हम हैं, जो पूरी दुनिया क्या, अपने योग्य लोगों को भी आरक्षण के नाम पर बेइज्जत कर रहे हैं।
अगर देश ही विकास नहीं करेगा; सरकार के पास पैसे ही नहीं होंगे, तो विकास योजनाएँ कैसे चलायी जाएँगी ? फिर दबे कुचले लोगों, जिनमें ज्यादातर दलित, आदिवासी एवं पिछड़े लोग हैं, उनका विकास कैसे होगा?
एक वर्ग को "सामाजिक न्याय" देने के नाम पर, दूसरे वर्ग के साथ "सामाजिक अन्याय" की इजाजत नहीं दी जा सकती।
वास्तव में, देश के तमाम पिछड़े एवं गरीब लोगों के विकास के लिये भगीरथ प्रयास की आवश्यकता है; जिससे बचने के लिये राजनीतिक दलों ने आरक्षण का कवच ओढ़ लिया है।
सबसे पहली बात यह है कि प्रतिनिधित्व "हितों" का होता है, जिसके लिये लोक सभा, राज्य सभा, विधानसभा आदि में आरक्षण दिया जाता है; परंतु सरकारी या निजी कार्यालय कार्यस्थल होते हैं, हितों के प्रतिनिधित्व की जगह नहीं और जहाँ कर्मचारियों की योग्यता से सेवा की गुणवत्ता सीधे सीधे जुड़ी होती है। योग्य व्यक्तियों को दरकिनार कर, उनके स्थान पर अयोग्य/कम योग्य व्यक्तियों को "आरक्षण" के आधार पर जगह देना "सेवा की गुणवत्ता" को सीधे सीधे प्रभावित करता है ।
मेडिकल में हम आरक्षण देते हैं, लेकिन क्या एक कम योग्य डाॅक्टर से हम इलाज करवाना पसंद करें? अपने इलाज के लिये, लाइलाज बीमारी के इलाज के लिये हम दुनिया भर में भटकते रहते हैं, लेकिन खुद सबसे योग्य व्यक्ति को आरक्षण के आधार पर डाॅक्टर नहीं बनने देना चाहते।
चीन, दक्षिण कोरिया, जापान तथा पश्चिमी देश यदि टेक्नोलॉजी में विश्व का सिरमौर हैं, तो इसका कारण यह है कि उन्होंने "योग्यता" को पूरा सम्मान दिया और दुनिया भर से योग्य लोगों को अपनी सेवाएँ देने के लिये आमंत्रित किया। अपनी योग्यता के बल पर भारतीयों ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमायी है, और एक तरह से उनके विकास का नेतृत्व कर रहे हैं। दूसरी ओर हम हैं, जो पूरी दुनिया क्या, अपने योग्य लोगों को भी आरक्षण के नाम पर बेइज्जत कर रहे हैं।
अगर देश ही विकास नहीं करेगा; सरकार के पास पैसे ही नहीं होंगे, तो विकास योजनाएँ कैसे चलायी जाएँगी ? फिर दबे कुचले लोगों, जिनमें ज्यादातर दलित, आदिवासी एवं पिछड़े लोग हैं, उनका विकास कैसे होगा?
एक वर्ग को "सामाजिक न्याय" देने के नाम पर, दूसरे वर्ग के साथ "सामाजिक अन्याय" की इजाजत नहीं दी जा सकती।
वास्तव में, देश के तमाम पिछड़े एवं गरीब लोगों के विकास के लिये भगीरथ प्रयास की आवश्यकता है; जिससे बचने के लिये राजनीतिक दलों ने आरक्षण का कवच ओढ़ लिया है।
sir pls expln in english :(
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